रोम रोम में शिव है जिनके

 



रोम रोम में शिव हैं जिनके ,
विष पिया करते हैं ।


दुख दर्द जला क्या पाएगा ,
जो अंगारों से सजते हैं ।


मां सती बिछड़कर जब शिव से,
 सन्ताप अग्नि में समा गई।


 प्रायश्चित पूरा होते ही ,
फिर मिलन हुआ जब उमा हुई।


सागर मंथन का गरल पान ,
देवों को अमृत सौंप दिया ।


सोने की नगरी रावण को 
खुद पर्वत पर्वत  वास किया।


 सारे जग को देखे वैभव ,
पर खुद वो भस्म रमाते हैं।


वो महाकाल,वो शिव शंकर,
 वो भोलेनाथ कहाते हैं ।


सच्ची निष्ठा के बलबूते,
 शिव शंकर का अनुराग मिले ।


फिर उनका तांडव  क्रुद्ध रूप,
 भोले भाले शिव  में बदले ।


कुछ विधि का लिखा हुआ,
 होता,कुछ कर्मो का   फल होता ।


सब दुख भूलो शिव भक्त बनो,
 वही है सबके परमपिता ।


रोम रोम में शिव है जिनके ,
 विष वहीपिया करते हैं ।


दुख दर्द जला क्या पाएगा,
 जो अंगारों से सजते हैं।


 सुषमा दिक्षित शुक्ला


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