हिंददेश की शान थी जो,नारीत्व की पहचान थी जो,
ममता के भण्डार से भरी,वो वीरांगना 'मनुबाई'थी।
तेजस्विता की मूरत थी,सर्वगुण सम्पन्न थी जो,
नही किसी से मतलब उसको,देश भक्ति में लींनथी जो।
बिजली सी तलवार के आगे,सबने मुँह की खाई थी।
हार कभी न जिसने मानी, हाँ वो लक्ष्मीबाई थी।
सहज सरल और निश्छल मन,हुई अवतरित लक्ष्मी बन,
संस्कृति से न डिगी कभी,हाँ वो लक्ष्मी बाई थी।
उठी जो नज़र शत्रुओ की,रक्षाहेतु परिवार देश की,
विकराल रूप धर रणचण्डी का,उतरी वो रणभूमि में।
खुद की जान न्यौछावर कर दी,हाँ वो लक्ष्मी बाई थी।
डा.संगीता पाण्डेय "संगिनी"
(स्वरचित)
कन्नौज ।।