प्रेम


"सोच रही हूं
खड़ी खड़ी मै 
प्रेम करूंगी
जी भर तुमको
और प्रेम ही
मैं पाऊंगी
प्रेम जगत की
मैं इक पंछी
उन्मुक्त गगन में
उड़ जाऊंगी
प्रेम सत्य है
प्रेम है शाश्वत
ना इससे अब
बच पाऊंगी
कहने को तो
प्रेम पथिक हूं
क्या दूरी तय
कर पाऊंगी
आज लगाया
प्रेम बगीचा
अब मैं इसको
महकाऊंगी,,,,,
    *****
© डॉ मधुबाला सिन्हा
मोतिहारी
23 जून 2020 


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