ओंम सर्व देवाय स्वाहा
सकुशल संपन्न हुई
कथा की पूर्णाहूति
अब सभी देवों से
करबद्ध निवेदन है
सभी अपने अपने लोक
प्रस्थान करें
मेरे आह्वान पर आप आए
मैं कृतज्ञ हूं
आपने मुझे
मेरे कुटुंब मेरे ग्राम
मेरे राष्ट्र
और मेरी प्यारी पृथिवी को
धन-धान्य वनस्पति
औषधि पशु पक्षियों
नदियों सागरों से समृद्ध
सुशोभित सानंद बनाया
मेरी गौओं के थनों में दूध
मेरी फसलों में अमृत
मेरी संततियों में तेज भरा
बुद्धि वीर्य शक्ति साहस
प्रदान किए
पर यह यज्ञ
कभी तो थमना ही था
पूर्णाहूति कभी तो होनी थी
सो हो गई
अब आप सभी देव देवता
प्रस्थान करें और
कभी लौट कर न आएं
हमने अब नए यज्ञ का
श्रीगणेश किया है
पृथिवीमेध यज्ञ
इस पृथिवी पर
जो भी शुभ है
सुंदर है
सहज है
वह सब समिधा है
जब हमारे मन निर्मल थे
तब नदियां भी निर्मल थीं
अब जैसी नदी है
वैसा ही मन है
कुत्सित कलुषित दुर्गन्धित
इस यज्ञ में नदी वनस्पति
पशु पक्षी तितलियां तक
हमारी अच्छाइयों सहित
भस्मीभूत होंगी
दुधमुंहे बच्चे
अविकसित किशोरियां
चहचहाती गौरैयां
भूनी जाएंगी
यज्ञ की अपावन अग्नि में
हमारी परमा स्मृतियों में
सदियों से सोया दैत्य
पुरोहित होगा
यजमान हम तमाम घृणित
नपुंसक दोगले नरपुंगव
नर्क की आग सी भभकती
हमारी भाषा की
तेज़ाबी ऋचाएं गूंजेगी
प्रदूषित नभमंडल में
चारों ओर होगा सिर्फ
आर्तनाद हाहाकार
अतः आप सभी यथाशीघ्र
करें प्रस्थान
और हां हर बार की तरह
लक्ष्मी जी को
यहां न छोड़ें
बलात्कार की संभावना है
अतः उन्हें भी ले जाएं
राम जी को भी ले जाएं
सरयू में इतना जल नहीं
कि वे दुबारा डूब सकें
कृष्ण से भी कहना
व्याध उनकी घात में है
महादेव को बताना
पिघल रही है
बर्फ हिमालय की
विष्णु समझदार थे
क्षीरसागर में ज़हर भरने से पूर्व
कर गए पलायन
आप कृपया शीघ्र विदा हों
इस धरती को नष्ट करने
परमाणु परीक्षण करना है
आवाज़ की गति से
मनुष्यों का नाश करने
बमवर्षक विमान
और मिसाइल बनाने हैं
ट्रैफ़िकिंग करनी है
नवजात कलियों
और अधखिले फूलों की
अनाहूत पिशाचों दानवों
वधिकों कसाइयों के
बहुत सारे काम
रुके पड़े हैं
आप लोग हटोगे
तभी हम कर पाएंगे
श्रीगणेश
पृथिवीमेध यज्ञ का
इससे पहले कि
बलियूप में बंधी पृथिवी
छटपटाए चीत्कारे
ग्रहण करो अंतिम हवि
और करो प्रस्थान
ओंम सर्व देवाय स्वाहा
हूबनाथ
प्रोफेसर, मुंबई विश्वविद्यालय