पड़ोसी खो दिया विश्वास
कब तक रखें उदार चरित?
कब तक अपनायें प्रेम की रीत?
जब पड़ोसी करने लगे छल,
तो करना होगा समस्या का
नए तरीके से हल।
बहुत हो गया बर्दाश्त का हद,
मां भारती के बेटों के खून से
रक्त रंजित होता रहा सरहद,
मैत्री की भाषा समझता नहीं खल,
अबकि बार सबक सिखाना है ऐसा,
हो जाएगा स्थायी हल।
बंद करो पड़ोसियों से आयात,
भारत की समृद्धि से जलते ये,
नुकसान पहुंचाते लगाकर घात।
नहीं समझे जो प्रेम की भाषा,
उसे समझ में आयेगी
जब मारोगे लात।
-- विनोद--