मेरी कलम


वायु से भी
तेज वेग से
निरंतर दौड़ता है मेरा मन
किन विषयों को छोड़ूं
किन पर लिखूं,
असमंजस में रहती है
मेरी कलम ।
कविता से लेकर
उपन्यासों तक
कमी नहीं है विषयों की
समेट सकूं जो इन विषयों को
अक्षम खुद को मैं पाती हूँ
लिखूं तो आखिर क्या मैं लिखूं
अकुलाहट दिल में पाती हूँ।


पर्वत पे लिखूं
सरिता पे लिखूं
विरह पे लिखूं
या मिलन पे लिखूं
अभिमान - द्वेष - शोषण हैं कितने विषय
या छोड़ इन्हें
उन्मुक्त युवा पे लिखूं ?
रणबांकुरों पे लिखूं
अनाचार पे लिखूं
या शिक्षा के व्यापार पे लिखूं
दशा पे लिखूं या दिशा पे लिखूं
या जनता की दुर्दशा पे लिखूं ?
विषय बहुत हैं लिखने को,
दिग्भ्रमित करतें हैं मुझे सारे
कविता कहानी और उपन्यास सब
लगते हैं मुझको प्यारे
लिखना चाहती हूँ कुछ सार्थक
पर फिर मैं ,,,
विषयों में फंस जाती हूँ
और अंततः
छोड़ लेखनी
निंद्रामग्न हो जाती हूँ
लिखूं  मैं कुछ न पाती हूँ।।


अंजु गुप्ता


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