मेरा दुश्मन कौन है

मेरा दुश्मन कौन है मैं पहचानता भी नहीं 
लड़ता हूं अंधाधुंध वैरी कौन जानता भी नहीं
खुद जानने का वक्त नहीं पाता
कोई बताता है तो फिर मानता भी नहीं 
अंधेरों में लड़ रहा हूं हद से गुजर रहा हूं अपनी हदें है क्योंकि मैं जानता भी नहीं
चाहूं तो उजालों से भर लूं जिंदगी अपनी
पर मन वश में नहीं तो कुछ ठानता भी नहीं

स्वरचित :


सुनीता द्विवेदी
कानपुर उत्तरप्रदेश


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