मन ठहरा-मन बहता

 



 मन  की  गति अविराम सदा
 गतिमानशतत् भावों संग रहता
 अगणित ख्वाब सजायें उर में 
सुख दुख का आभास है करता।


बहता चंचल निर्झर जैसा
सुख की अनुभूति करता
होते  पूरे  स्वप्न हृदय के
प्रेम भाव की  बहती  गंगा।


सुख का वेग  तरल बन बहता
बहता मन बन सलिल सरस
सावन की रिमझिम फुहार सा 
हर्षित होता मगन मन निर्मल।


काल चक्र की परिधि में उलझा
सुलझाता अनसुलझी उलझन
भरता  उड़ान  गगन छुने की  
 नही ठहरता एक पल चंचल मन


 होकर हताश  खाकर  मात
हो जाता  विरक्त  वैरागी फक्कड़
मन की तंरगो की पकड़ डोर
मन जाता ठहर जैसे शान्त सरोवर।


अविराम  गति मन बाँवरे  की
उड़ता चहुँदिशि जैसे नभचर
विश्राम मात्र प्रभु चरणों मेंहै
बहता मन जाता वही ठहर।


मन्शा शुक्ला
अम्बिकापुर
सरगुजा छ.ग.


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