नभ ने पूछा धरा से
क्यों
तुम इतनी सहनशील हो,
सबका बोझ
तुम्हारे कन्धों पर,
फ़िर भी
समन्दर तरह
तुम गहरी हो,
क्यों
तुम अवसाद में नहीं
इतना कुछ सहती हो,
धरा मंद-मंद मुस्काते बोली -
नभ तुम
पिता की भाँति-
सितारों, पंछियों, बादलों को
संरक्षण देते हों,
मैं धरा हूँ
माँ की भाँति-
बादलों के आँसुओं को
अपने
आँचल से पोंछ लेती हूँ,
जब सितारे
रात्रि में उदासीन होते हैं
तो
मैं उनके दुःख को सहेज लेती हूँ
और
जब तेज आँधी में
पंछियों के घर नष्ट होते हैं
उनको
अपने गर्भ का आसरा देती हूँ
मैं माँ हूँ:
इसलिए -
उद्वेलित मन से निकली पीड़ा
बच्चों की समझ लेती हूँ..!
अनुभूति गुप्ता