"डाक्टर साहब मेरे बच्चे को बचा लीजिए " वह बदहवाश होकर अपने बच्चे को कंधे से लगाए इधर उधर भटकते हुए अस्पताल पहुँची।
बच्चा बहुत प्यारा था उसका मासूम चेहरा कुम्हला गया था। बच्चे की माँ
का नाम शशि था।वह एक प्राइवेट कंपनी में कार्य करती थी।
एकल परिवार था पति पत्नी दोनों कामकाजी थे। बच्चे की देखभाल
के लिए एक आया रख छोड़ी थी।
वह अपने दफ्तर में थी ,तभी उसकी
आया मीना का फोन आया।
" मेम साहब बाबा की तवियत ठीक
नहीं लग रही आप घर आ जाइए।
वह भागी हुई घर पहुँची, रास्ते में उसने अपने पति अविनाश को भी
बता दिया।
अविनाश ने जल्दी से काउंटर पर जाकर पैसे जमा किए।बच्चे को
एडमिट कर लिया गया।
शशि काफी बेचैन थी , बच्चा बेसुध था।उसकी परेशानी
देख अस्पताल के कर्मचारी ने उस शांत रहने को कहा।
अविनाश अपने माता पिता को मोबाइल से सूचित करने लगा।
एक घंटे बाद डाक्टर ने कहा " मैंने
भरसक कोशिश की है हालत में सुधार होनी चाहिए फिर भी यदि तीन घंटे के अंदर स्थिति सामान्य नहीं हुई तो मुझे किसी दूसरे हॉस्पीटल में रेफर करना पड़ेगा।
शशि ने सुना तो वह हकबका गयी
और रोने लगी।
अविनाश ने उसे ढाढस बंधाया। शाम तक घर से अविनाश के मम्मी पापा भी आ गए।
बच्चा आइ सी यू में था। बच्चे को खून
की जरूरत थी। शशि ने कहा " मेरे खून का कतरा कतरा ले लीजिए पर
मेरे बच्चे को बचा लीजिए "
सुबह तक बच्चे की हालत थोड़ी सुधरी। बच्चा दादी के गोद में था।
शशि ने पहली बारसास की समीपता
महसूस की।
वह बोली " माँ जी मेरा सोनू ठीक हो
जाएगा न ? सास बच्चे की हालत देख चुप ही रही। शशि की आवाज जरा तेज हुई। आप कुछ बोलती क्यों नहीं?
सास ने कहा " बहू तुम चिंता मत करो ईश्वर ने चाहा तो सब ठीक हो जाएगा।
सभी मन ही मन बच्चे के लिए दुआ
कर रहे थे ।
दोपहर होने तक बच्चा थोड़ा ठीक हुआ।
डाक्टर ने बताया बच्चा खतरे से बाहर है। सब को चैन आया।
अविनाश बोला " माँ आपको हमारे साथ रहना चाहिए,आपलोगों के बिना
रहने का फैसला करना मेरी भूल थी।
आप दोनों को भी मेरे साथ ही रहना
होगा।
लेखिका निभा कुमारी
राजनगर , मधुबनी , बिहार
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