क्रोध कभी न कीजिए,
है यह वैर - पाप का मूल,
अति अशांति देता है सबको,
है प्रेम - व्यवहार मिलाता धूल,
है प्रेम - व्यवहार मिलाता धूल,
उन्नति - विकास रुक जाता है,
कहते 'कमलाकर' हैं क्रोध से,
मान - मर्यादा सिमट जाता है।।
कवि कमलाकर त्रिपाठी.
क्रोध