हे!ऋतु रागिनि तुम नभ आये

ऋतु पावस गो-धूली बेला,
विस्मित नभ रक्तिम घन छाये-
पुरुवा मंद प्रकृति अल-बेली,
खग कलरव कल गीति सुनाये-


दूर्वा-दल प्रमुदित हरियाली,
स्मित चन्द्र किरण धर छाये-
सरस आम महुआ रस डाली,
सान्ध्य सुहानी कोयल गायें-


नभ नीलम बसुधा हरियाली,
सौरभ-सिक्त प्रभात सुहाये-
उषा काल पूरब दिशि लाली,
सिन्दूरी धरणी भर  छाये-


सुमुखि सयानी अलबेली प्रिय,
गीत मधुर-सुर सखी सुनायें-
हर्षित मेघ घटा अठ-खेली,
नीम डाल झूला रस गाये-


मधुर-मधुर मद्धिम रस बोली,
सुर-सरगम सुन्दर मन भाये-
कजरी सुन झूला नभ झूली,
रिम-झिम कर मेघा घन छाये-


विपुल राशि बदली नभ काली,
तड़ित यामिनी रूप दिखाये-
गर्जन-तर्जन सुन अंशुमाली,
पथ पीछे अम्बर छिप जाये-


प्रात-साँझ सुन्दर नभ लाली,
अखिल धरा नन्दन वन छाये-
स्वर्ण कलश बन नीरद प्याली,
हे!ऋतु रागिनि तुम नभ आये।।
राकेश कुमार पाण्डेय
हुरमुजपुर,सादात
गाजीपुर,उत्तरप्रदेश


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