हे कोरोना अब बस चले जाओ..........
तुम्हारे आगमन से मेरा
घर बार तहस नहस हो गया
गगनचुंबी इमारतों का ऐसोआराम
क्या तुम्हारे लिये कम पड़ गया।
उनमें जन्म लेकर तू वांशिगटन
तक भी पहुंचा।
हे कोरोना चले जाओ अब........
तुम्हें वहां भी स्थान नहीं मिला
क्या महलो की सुख-सुविधा से
तुम्हारा मन नहीं भरा
मुझ गरीब की झोपड़ी में तुम्हारी आहट
मेरी ज़िंदगी छिन-भिन्न हो गयी ।
मेरी ज़िंदगी रूपी नैया को
तुमने अपने वायरस रूपी तूफ़ान से
उथल पुथल मचा के रख दी है।
हे कोरोना अब तो चले जाओ............
इस तरह तो मेरा
सारा परिवार मुझसे
जुदा हो जायेगा,
तुम्हारे असर के कारण
मुझे मेरे अपनों से जुदा होकर
क्वारटाइन/ नजरबंद होकर
रहना पड़ रहा है ।
अब तो तुम चले जाओ.............
तुम्हारे इस प्रकोप से मेरा
रक्तचाप बढ़ता जा रहा है,
अगर तुम यूँ ही अपना असर
दिखाते रहे, तो मेरा तो जीवन तहसनहस होकर रह जायेगा ।
मुझे अब इस जीवन का कोई भरोसा
नहीं रहा है ।
कब क्या हो जाये ।
हे कोरोना अब तुम चले जाओ..............
तुम्हारे भयानक असर से
मेरी माँ चल बसी है,
बाप संक्रमित है,
भाई की हालत भी गम्भीर है,
छोटी सी प्राइवेट नोकरी मेरी
जो बड़ी मुश्किल से मिली थी
वो भी तुम्हारी दरिंदगी के कारण
चली गयी है।
अब तो तुम चले जाओ............
अब मेरे पास कुछ भी नहीं बचा है
मेरी हालत इतनी ख़राब हो गयी
कि मुझे अब कुछ भी नहीं सूझ रहा है
ओ निष्ठुर वायरस अब तो चले जाओ
हे कोरोना अब तुम चले जाओ..........
जूना खड़का
प्राध्यापिका एवं साहित्यकार
10- तनहुँ ( पोखरा )
नेपाल !