"मत समझना हार गई मैं
या तुम जीत गए हो
प्रथम मिलन की बेला में
नयनों में बस गए हों
कहना नहीं,नयन अब खोलो
बाहर मुझको आना है
किस्मत की लिखी रेखा को
प्रेम से मुझे सजाना है,,,,
भोर सुनहरी किरण के सँग
माँग तेरी भर आना है
दीप जला सन्ध्या-बेला में
आरती में तुम्हें बसाना है,,,,
नहीं कहना कभी भी तुम की
आओ तेरा श्रृंगार करूँ
पाँव महावर माथे बिंदी
हांथों में प्यार शुमार भरूँ,,,,,
काजल की रेखा बन नयनों में अब तो मैं छाना चाहूँ
और माँग की रेखा में बस
भरो, मैं चमकना चाहूँ,,,,
मत कहना,अतृप्त लबों में
टूट-टूट बसना चाहूँ
मत कहना यह भी कि
नयनों से पीना चाहूँ,,,,
छल-छल कर तुम तो यूँहीं
हरदम सताते रहते हो
जब भी पास में आ जाऊं
बाँहों में भर लेते हो,,,,
चलो छोड़ो यह रगड़ा अब
तुम मेरे मैं तेरी हूँ
न तुम हारे न मैं जीती
तुम बिन मैं अधूरी हूँ,,,,
प्रेम-नगर के प्रेम-पथिक
राह भूल नहीं जाना तुम
पलक-पावडा बिछा रखी मैं
आ,हृदय लग जाना तुम,,,,,,,,,,,,,
*******
© डॉ मधुबाला सिन्हा
मोतिहारी