गृहणी २ नवगीत

 



मंदिर मस्जिद गिरजाघर 
दौड़ी-दौड़ी जाती हूं 
गंडा ताबीज भभूत लिए
अलाऐं बलाऐं मिटाती हूं 
व्रत उपवास रोजे नियम 
सब करती जाती हूं 
धूप दीप अगर तगर 
मोम भी जलाती हूं 
मेरा नहीं कुछ (इस घर में पर मैं इसकी और इसमें रहने वालों की सलामती के लिए) दुआओं में रोज हाथ उठाती हूं 
१३/०६/२०
स्वरचित :


सुनीता द्विवेदी
कानपुर उत्तरप्रदेश


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