एक बूँद स्नेह..


भीड़ का ये 
रेगिस्तान
तरस रहा है 
एक बूँद स्नेह के लिए 
चातक सा निहारता रहता है
आकाश की ओर ..
काश कहीं एक कांधा तो होता उसके लिए
दो स्वार्थ रहित सच्चे मीठे बोल
और एक ऐसा हाँथ 
जो आगे बढ़ सहारा दे देता
निकाल लाता
उस अन्तिंम हताशा भरे पल से
जहाँ सिर्फ मृत्यु ही 
अंतिम विकल्प नज़र आती है 
जीवन से उल्टी आने लगती है
मन ढूढ़ रहा होता है 
एक स्थिर सुकून 
जहाँ कोई कोलाहल न हो
कोई छल फरेब ना हो 
ना ही शोषित होने का दर्द
उपहास या तिरिस्कार
उस पल से पहले भी
वो न जाने कितनी बार मर चुका होता है 
लड़ते लड़ते थक चुका होता है 
काश कोई तो होता 
जो रेत के उस एक कण को
दे जाता एक बूँद स्नेह ..!!😢
कारण असंख्य हैं
ज्ञात आपको भी हैं 
और हमें भी ..
फिर भी 
मत नष्ट कीजिये 
अपनी इन स्नेह की बूँदों को 
बिना इनके हम उर्वर भूमि नहीं
सिर्फ रेगिस्तान हैं 
सिर्फ रेगिस्तान ..!!
स्वरचित
अर्पना मिश्रा


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