एईएस को पहचान तत्परता से बचा ली बच्चों की जान


-सामुदायिक स्तर पर आई जागरुकता बन रही बड़ा हथियार
-लोग खुद भी रख रहे बच्चों का ध्यान और दूसरों को भी कर रहे प्रेरित



आसीफ रजा


मुजफ्फरपुर । चमकी बुखार में जरा सी भी देरी बच्चे की जान ले सकती है, यह बात अब सब समझने लगे हैं। लोगों की इसी समझ और तत्परता ने उनके घर का चिराग बुझने से बचा लिया। ऐसे बच्चों के मां-बाप उस मंजर को याद कर भावुक हो जाते हैं, जब वे अपने बेहोश बच्चे को अस्पताल लेकर भागे थे। समय पर इलाज के कारण बच्चा तो बच गया, लेकिन उस दिन की चर्चा मात्र से वे थोड़ी देर के लिए असहज हो जाते हैं। एईएस से ठीक हुए यहां पर ऐसे दो बच्चों के अभिभावकों से बातचीत साझा कर रहा हूं, जिनकी तत्परता से दूसरे लोग सीख सकते हैं, इस बीमारी की जद में आने से अपने घर के चिराग को बुझने से बचा सकते हैं।


केस 1
31 मार्च 2020 की उस सुबह को याद कर रामनगर गायघाट के मो शहज़ाद आज भी सिहर उठते हैं। रात में 4 साल का खुबैद कितना अच्छा से खेल कर सोया था। सुबह होते होते चमकी की जद में आ गया। बुखार से बच्चे का बदन तपने लगा। पहले तो शहज़ाद ने बच्चे को घर में रखी बुखार की दवा दी। थोड़ी देर में बुखार उतर भी गया, लेकिन फिर तेज बुखार के साथ बेहोशी आने लगी। बच्चे के गले में घरघराहट सी होने लगी और वह चिहुंकने लगा। शहज़ाद को लग गया कि यह चमकी का लक्षण है। उन्होंने तुरंत घर के बगल के एक डॉक्टर को बुलाया। डॉक्टर ने तुरंत बच्चे को एसकेएमसीएच ले जाने के लिए कहा। बच्चे को वहां भर्ती कराने में मदद की। वहां बच्चे का इलाज चला। 28 अप्रैल को 4 साल के खुबैद के चेहरे पर वही भोली सी मुस्कान लौट आई। उस दिन शहज़ाद के बच्चे को नई जिंदगी मिली थी। बच्चे के ठीक होकर लौटने पर पूरा मुहल्ला खुश था। शहज़ाद दर्जी का काम करते हैं। भले ही उनकी माली हालत उतनी ठीक नहीं है, लेकिन बच्चे के खानपान में कोई कमी नहीं करते। वे जानते हैं कि कुपोषित बच्चों को एईएस का खतरा ज्यादा रहता है। इसलिए वे अपने बच्चे को कभी भूखे पेट सोने नहीं देते। साफ-सफाई का भी पूरा ख्याल रखते हैं। दूसरों को भी बताते हैं। उनका कहना है कि सरकार की तरफ से फैलाई जा रही जागरुकता लोगों के काम आ रही है। लोग ऐसे मामलों में सीधे सरकारी अस्पताल का रुख करते हैं। शहज़ाद जैसे अभिभावकों के इस भरोसे से स्वास्थ्य विभाग के बेहतर प्रयासों को सकारात्मक ऊर्जा मिलती है।


केस 2
चमकी बुखार से ठीक हुए बच्ची का यह मामला मुजफ्फरपुर के मिठनसराय का है। इसमें बच्ची की जान बचाने में आशा मंजू देवी की बड़ी भूमिका है। खुद अपने स्तर टेम्पो भाड़ा कर तुरंत बच्ची को एसकेएमसीएच न ले जाती तो शायद बच्ची की जान बचा पाना मुश्किल हो जाता। बात 19 मई 2020 की है। मिठनसराय के शिवचंद्र राम की 3 साल की प्यारी सी रोशनी चमकी की चपेट में आ गई। तेज बुखार आया और अचेत हो गई। गांव में हलचल मच गई। आशा मंजू देवी को जैसे ही जानकारी हुई, वह तुरंत शिवचंद्र के घर पहुंच गईं। उन्होंने बच्ची की हालत देख एक पल का भी इंतज़ार नहीं किया। तुरंत एक टेम्पो भाड़ा कर बच्ची को लेकर एसकेएमसीएच पहुंच गई। समय से इलाज मिला तो बच्ची की जान बच गई। 21 मई 2020 को शिवचंद्र के घर में छाया अंधेरा रोशनी के आने से खुशी के उजाले में तब्दील हो गया। सबने आशा मंजू देवी की तत्परता की सराहना की। शिवचंद्र राम भी जागरूक हैं। साफ-सफाई और बच्ची के खानपान का पूरा ध्यान रखते हैं। आशा मंजू देवी लगातार फॉलोअप कर रही हैं। अब भी बच्ची का हालचाल जानने जाती हैं। उनका कहना है कि सामुदायिक स्तर पर यह जागरुकता चमकी बुखार को मात देने में बड़ा हथियार बनेगी।


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