भाव प्रवाह - 24 


डॉ उषा किरण


आत्म नियंत्रण- यानी स्व नियंत्रण की क्षमता। स्वयं पर नियंत्रण रखना बहुत ही महती कार्य है। आज के भौतिकवादी युग में जहाँ हर व्यक्ति अदृश्य रूप से महत्वकांक्षा की जंजीर में बुरी तरह जकड़ा हुआ है, तब आत्म नियंत्रण बहुत ही आवश्यक हो जाता है। 
                 व्यवहारिक जीवन में आत्म नियंत्रण हमारी आत्मा का नैसर्गिक गुण होने के कारण सर्वदा अनुकरणीय है। इसकी उपेक्षा से कितने भयानक परिणाम सामने आते हैं जिसे बताने की जरूरत नहीं है। यह नित्य प्रति घटित होने वाली घटनाओं में स्वतः ही दृष्टि गोचर होता है। अक्सर लोग कहते सुने जाते हैं कि नियंत्रण की कमी थी जिसे नहीं खोना चाहिए था। 
       यह शाश्वत सत्य है कि हमारे भीतर मानवी वृति और दानवी वृति साथ - साथ रहती है। गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में लिखा है  "सुमति कुमति सब कें उर रहही", " जहाँ सुमति तह संपत्ति नाना, जहाँ कुमति तह विपत्ति निदाना "।  जहाँ मानवी वृति सुमति मनुष्य को सन्मार्ग दिखाती है, वहीं दानवी वृति कुमति मनुष्य की बुद्धि को भ्रष्ट कर पतन के गर्त में ढकेल देती है। 
               इतिहास गवाह है कि मनुष्य पर जब उसकी कुबुद्धि हावी होती है, चाहे वह व्यक्ति कितना भी विद्वान क्यों न हो, अगर वह आत्म नियंत्रण खोने लगता है तो उसे पतन के गर्त में गिरने में जरा भी देर नहीं लगती । रावण की विद्वत्ता जग विदित थी। उसकी विद्वता के चर्चे त्रिलोक तक थी, किंतु जब उसके ऊपर कुमति हावी हो गई तब वह पथ भ्रष्ट हो गया और वह अपना हर प्रकार का पतन कर बैठा। उसने अपनी नैतिकता खो दी। सदाचार को ताक पर रख दिया। परिणाम जगजाहिर है। 
              जो व्यक्ति स्वयं को नियंत्रण में रखता है उसका विवेक कभी भ्रष्ट नहीं होता। वह निरंतर प्रगति के पथ पर अग्रसर होता है। मानव का जन्म निर्माण के लिए हुआ है। अगर वह अपने मार्ग से विचलित होता है तो सीधे पतन के गर्त में गिरता है। जब वह आत्म नियंत्रण में रहता है तब उसके सामने सफलताओं के नित नव द्वार खुलते हैं।  
              इतिहास सदैव ही सद्व्यक्तियों को ही नायक का दर्जा देता रहा है। जो आत्म नियंत्रण की कसौटी पर खरे उतरे और किसी भी तरह की कमजोरियों के शिकार नहीं बने जो कि उनकी उन्नति के मार्ग में बाधक हो सकती थी। इतिहास ने उन्हीं को पूजा । 
        आज की नई पीढ़ी में विचलन की बात आम हो गई है। हाल फिलहाल में घटी विचलित करने वाली घटना हमें सोचने पर मजबूर करती है कि आखिर हो क्या गया है इस पीढी को? आज सोचने की जरूरत है। अपने भीतर झांकने की जरूरत है। हमें नियंत्रण में रहना है। स्वयं के नियंत्रण में। जिसमें हमारे और हमारे समाज का उत्थान निहित है।
               तो, आइए हम सोंचे, कुछ विचार करें, स्वयं के नियंत्रण पर जिससे सदैव सकारात्मकता का प्रवाह हो , हमारे लिए और हमारे समाज के लिए। संजीवनी के समान है आत्म नियंत्रण जिसे हम सभी धारण करें। 


डॉ उषा किरण


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