बेटे और बेटियों मे फर्क न करे दोनों एक सामान है -भाजपा नेता बसंत कुमार

 संवाददाता समीर श्रीवास्तव लखनऊ



आजकल हर राजनितिक दल महिला सशक्तिकरण की बात क़र रहा है, जिस को भी देखिये महिला सशक्तिकरण के नाम पर यन जी ओ खोलकर अपनी रोटी सेकने मे लगा हुआ है निर्भया कांड समय हर व्यक्ति कैंडल मार्च मे लगा हुआ था पर क्या समाज मे इतनी चेतना आयी की बहनो बेटिओं पर अपराध बंद हुए, 
     बात राजनितिक दलो द्वारा महिलाओ को प्रतिनिधित्व देने की है तो कोई भी दल उनको एक तिहाई प्रतिनिधित्व देने को तैयार नहीं है बस हर पार्टी मे महिला मोर्चा की इकाई स्थापित क़र महिलाओ के प्रति उत्तर दायित्व की इतिश्री समझ लीं जाति है !कुछ स्थानीय निकायों ग्राम पंचायतो आदि मे आरक्षण की वजह से यदि कोई महिला चुन भी लीं जाती है तो सारे अधिकार का उपयोग पतिप्रधान करते है !
  इस समय बेटियों को कमजोर समझ क़र उनके लिये विशेष सुविधाओ की बात करके हम उन्हें निर्बल दिखाने की कोशिश करते है इसका दुष्परिणाम यह है बच्चियां अपने आप को लड़कों से कमजोर मानती है जबकि वे सेना मे कार्यरत है पुलिस मे है व मर्दो की तरह जहाज उड़ा रही है, वही दूसरी ओर लड़कों मे हीन भावना  स्थान बना रही है, लोग बेटी को अधिक प्यार  क़र रहे है या प्यारकरने  का दिखा वा करने लगे है जबकि वास्तविक रूप मे हमें बेटा बेटी एक समान की भावना से काम करना चाहिए जिससे बेटा बेटी बगैर किसी दबाव के उन्नति करे व देश के विकाश मे योगदान दे ।


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