बेगाना


"रात की गहरी छाया थी
सपनों में अंधियारी थी
कुछ टूटते,कुछ बनते 
अपनों से एक दूरी थी
स्वप्न सलोने कौन ले गया
अपनों से दूर कौन हो गया
जान नहीं पाई कभी मैं
सुख तो अब वीराना हो गया
आस निराश में बदल गया है
प्यार का जादू उतर गया है
अब दिल को समझाए कौन
अपना बेगाना हो गया है
नगर-नगर और डगर-डगर
घूम आयी मैं शहर-शहर
सुख की छंटनी छांट मिली
रहा न अपना कोई रहबर,,,,,,
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© डॉ मधुबाला सिन्हा
मोतिहारी
30 जून 2020 


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