गरे मा सुशोभित नीक पीत बैजयन्ती माल,
पग केरे नूपुर झनक हिय नीको भा रही ।।
हाथ दुइनो पहुँची ललाट कोने टीका सोहे,
नव नव नीलो रंग कलेवर लुभा रही ।
जैसे नीलो अम्बर मा शोभित घन घनश्याम,
वैसे गोकुल वृज मा ई बाँसुरी लजा रही।।
भाखै कवि चंचल जौ ठाढी़ मिलैं राधिका,
तौ हाल नन्दलाल केरी उपमा ध्वजा रही ।।1 ।।
बोलैं बृषभानु लली सुनु सारी गोपियाँनु,
आजु मनमोहन ना लता कुंज गायेंगे ।।
बाल ग्वाल गोकुला कै सबु परीशानु करैं,
बछडा़ औ गायें सारी उनते ही हँकायेंगे ।।
भाखत तीखी वानी म्हैं राधिका ऊ घनश्याम,
आके ग्वाल बाल संग ना बाँसुरी बजायेंगे।।
कहैं कवि चंचल मनाय लीनी जसोमति,
अबु नाही दिन कौनौ मुरली धुन सुनायेंगे ।।
आशुकवि रमेश कुमार द्विवेदी, चंचलओमनगर,सुलतानपुर, यूपी।। 9125519009 ।।
बाल वर्णन