अंधेरी रात में बातें बयां न हो पायी.


रात की स्याही कुछ इस कदर गहराई,
कलम की स्याही कुछ लिख नहीं पायी,


लिखना था कुछ सुकून- ए- पल,
रौशनी सुकून की नजर नहीं आयी


लिखना था कुछ एहसासों के बादल,
कलम की स्याही बरस नही पायी


अनसुलझी भावनाएं आहत हैं हर पल,
भंवर में फंसी रहीं किनारा नहीं पायी.!


कुछ अधूरे सपने संजोने थे किताबों में,
अंधेरी रात में बातें बयां न हो पायी.!


रात की स्याही कुछ इस कदर गहराई,
कलम की स्याही कुछ लिख नहीं पायी.!


@अर्चना भूषण त्रिपाठी "भावुक"


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