हुक्मरानों का फ़रमान
आओ बने आत्मनिर्भर
जहां सारा है, हलाकान
अब भी है भारत महान ।
विरोधाभासी हुए आभासी
चरखे की जगह चाय ली
कह रहे लोकल का वोकल
पर शराब पुरानी नई बोतल।
बंदिशों का दौर दुखदायी पर
हजारों मील नन्ही कदम जाना
संवेदनाओं का नही अमलीजामा
राहत भी लगे बिन नाड़े पायजामा।
सुरेश वैष्णव
भिलाई (छत्तीसगढ़)