सरिता पाण्डेय
आज कल इंटरनेट पर जहां हम सब हिंदी लेखक-लेखिकाएं, कवि-कवियत्रियां, शायर-शायराएं जब-तब अपनी रचनाओं के कापी-पेस्ट होने और रचनाओं में इस्तेमाल शब्दों तक की मलकियत को लेकर हो-हल्ला बरपा करते दिखाई दे रहे हैं तब वहां मुझे याद आ रहे हैं वो तमाम खुशमिजाज़ पेंटर शायर जो खुले दिल से ट्रकों के पीछे बड़ी ही रोचकता से अपनी लेखन कला का इज़हार करते हैं और वो भी बिना किसी कापीराइट वाले अहं भाव के !
ऐसे सभी शायर पेंटरों द्वारा ट्रकों के पीछे लिखे गए शेरो -शायरियां, कविताएं, चुटकुले, उपदेश और किस्से-कहानियां हर मुसाफिर को सफर के दौरान किसी ट्रक के पीछे से आ कर 'धप्पा' बोलते हुए कभी हंसाते हैं कभी रुलाते हैं कभी जीवन के गूढ़ अर्थ समझा जाते हैं तो कभी सफर में सावधानी बरतने की सलाह देकर टा-टा-बाय-बाय करते हुए उड़नछूं हो जाते हैं !
और अक्सर जब भी कभी सफर के दौरान हम बातों में गुम , मस्ती करते हुए ज़रा लापरवाह होने लगते हैं तभी सामने से अचानक किसी ट्रक के पीछे लिखी कोई शायराना पंक्ति हमारी आंखे खोल जाती हैं न , जैसे कि
'सावधानी से गाड़ी चलाओगे तो बार-बार मिलेंगे !
लापरवाही से गाड़ी चलाओगे तो हरिद्वार मिलेंगे !'
और इसे पढ़ते ही गाड़ी चलाने वाला सारी लापरवाही भूल तुरंत संभल जाता है !
हाइवे पर जितने भी ट्रक गुज़रते हैं सभी अपने भीतर एक संदेश छुपा कर लाते हैं और बड़ी खूबसूरती से धीरे से हमारे कान में फुसफुसा कर चले जाते हैं !
मेरा मानना है कि ऐसे तमाम पेंटर शायर जो ट्रकों के पीछे अपनी खूबसूरत शायरी लिखते हैं वो भी बिना किसी कापीराइट के , और फिर इस रचना को बिना किसी अहंभाव के जनमानस के बीच आनंदपूर्वक विचरण करने के लिए स्वतंत्र छोड़ देते हैं तो कहीं न कहीं हिंदी भाषा की ओर से एक बड़े सम्मान के हकदार वो भी तो बनते हैं कि नहीं ?
ट्रकों पर शायरी लिखने वालों के हिंदी भाषा को दिए इस निष्काम योगदान का हमें दिल से शुक्रिया करना चाहिए !
मुझे तो लगता है कि आज हिंदी यदि बची हुई है तो कहीं न कहीं इसमें इन शायर पेंटरों का भी योगदान है और जब तक ट्रकों, ऑटो रिक्शा और बसों आदि के पीछे हिंदी में शायरियां और कविताएं लिखी जा रही हैं तो समझो कि आमजन की दुलारी 'हिंदी' जिंदा है !
वरना रही बात, साल में एक बार हिंदी दिवस मनाने की दौड़ में वातानुकुलित हालों में होने वाले सेमिनारों की तो यकीन मानो वो सब हिंदी नहीं बल्कि वह हिंदी के साथ एक प्रकार की औपचारिकता भर है !
यही सड़कछाप शायरी है जो बिना किसी भेदभाव के अचानक राह चलते सामने से आकर आपको भीतर तक कभी गुदगुदा जाती है , कभी जीवन दर्शन का पाठ पढ़ा जाती है , कभी किसी पापा के इंतजार में बैठे बच्चों के नाम पढ़वाकर हमें उदास कर जाती है !
कभी देशप्रेम , कभी मातृप्रेम ,कभी किसी प्रेमी दिल की विरह भरी वेदना छलका जाती है.
तेज़ गति से भागती गाड़ियों की भीड़ से परेशान बेचारी सड़क के तनाव को कम करने की कोशिश में लगी इन शायरियों और कविताओं का अपना ही स्वैग है !
फिर चाहे इन्हें कितनी ही निम्नस्तरीय,सड़कछाप, हल्की या सस्ती तुकबंदी की उपाधियों से नवाजा जाए , इन्हें जो एक बार पढ़ लें तो फिर भूलती नहीं .सच्ची और अच्छी हिंदी की रूह तो इन्हीं में बसती है.
मौसम चाहे भरी गर्मी का हो, या हाड़ कंपाने वाली सर्दियों का , हर मौसम में जब शोर मचाते बोनट के पास बैठे ड्राइवरों-हेल्परों-कंडक्टरों के हालात यदि कभी देखे तो पता चलेगा कि उनका जीवन कितना कठिनाइयों भरा और एकदम खानाबदोश होता है. सूनी, नींद भरी आंखें, पपड़ाते होंठ , रूखे-उलझे बाल और थकान से टूटे शरीर के साथ ही
अपने घर परिवार से दूर होने का दर्द भी कहीं न कहीं इनकी शायरियों में छलक जाता है .
कई ट्रकों के पीछे एक युवती या किसी बच्चे की तस्वीर बनी होती है और नीचे लिखा होता है ...
"घर कब आओगे… "
"रात होगी, अंधेरा होगा और नदी का किनारा होगा
हाथ में स्टियरिंग होगा, बस मां का सहारा होगा !"
'हमें जमाने से क्या लेना, हमारी गाड़ी ही हमारा वतन होगा
दम तोड़ देंगे स्टियरिंग पर, और तिरपाल ही हमारा कफन होगा !
'चलती है गाड़ी तो उड़ती है धूल,
जलते हैं दुश्मन तो खिलते हैं फूल !'
'30 के फूल 80 की माला,
बुरी नजर वाले तेरा मुंह काला!'
"जब परदेस लिखा है किस्मत में
तब याद वतन की क्या करना !"
"ऐ मालिक क्यों बनाया इस गाड़ी बनाने वाले को ?
घर से बेघर कर दिया गाड़ी चलाने वाले को !"
"कुंवारा स्टाफ है ..
बाकी सब ठीक-ठाक है !"
कई शायरियां तो पूरे समाज को ही शिक्षा देती प्रतीत होती हैं , जैसे कि -
"जय शिव शंकर, भीड़ ज़रा कम कर !"
"देखो मगर प्यार से!"
"नीयत तेरी अच्छी है तो किस्मत तेरी दासी है
कर्म तेरे अच्छे हैं तो घर में मथुरा काशी है!"
"हम दो हमारे दो !"
"फानूस बनकर जीसकी हीफाजत हवा करे
वो शमां क्या बुझे जिसे रौशन खुदा करे!"
"अपनों से सावधान!"
"दोस्ती पक्की, ख़र्चा अपना-अपना!"
"या खुदा मेरे दुश्मनों को महफूज़ रखना
वरना नेरे मरने की दुआ कौन करेगा ?"
"मांगना है तो ख़ुदा से मांग बंदे से नहीं,
दोस्ती करनी है तो मुझसे कर, धंधे से नहीं!"
"देते हैं रब, सड़ते हैं सब,
पता नहीं क्यों !"
"मतलब की है दुनिया कौन किसी का होता है,
धोखा वही देते हैं जिन पर ऐतबार होता है!"
"नेकी कर जूते खा,
मैंने खाए तू भी खा!"
"मालिक महान है
लेकिन चमचों से सब परेशान हैंं !"
किसी भी ट्रक ड्राइवर को अपने ट्रक से उतना ही प्यार होता है जितना माता-पिता अपनी औलाद से करते हैं . अक्सर हर गाड़ी का एक प्यारा सा नाम भी पीछे लिखा होता है जैसे , दुलारी, लाडो , मोरनी, नागिन,शेरनी, चांदनी और हसीना आदि .
गाड़ी के प्रति प्रेम से लबरेज़ इन शायरियों को भी देखिए ज़रा -
"मैं बड़ा होकर ट्रक बनूंगा !"
"मेरी चलती है तो तेरी क्यों जलती है ?"
"मालिक की गाड़ी , ड्राइवर का पसीना
चलती है रोड पर बनकर हसीना !"
"ज़रा कम पी मेरी रानी
बहुत महंगा है इराक का पानी !"
"दम है तो क्रास कर
नहीं तो बरदाश्त कर !"
"हट्ट पिच्छे मितरां दी मुच्छां दा सवाल है !"
"बुरी नज़र वाले तू सौ साल जीए
तेरे बच्चे दारू पी-पी कर मरें !"
"मेरी लाडली आती है !"
"सोनू ते मोनू दी गड्डी !"
ट्रकों के पीछे सावधानीपूर्वक गाड़ी चलाने की हिदायतें देखिए किस खूबसूरत अंदाज़ में लिखी होती हैं -
"चल हट पीछे!
लटक मत टपक जाएगा!"
"लटक मत पटक दूंगी!"
"बेटा छूले त गेले
सटले त घटले!"
"सावधान आगे वाला कभी भी खड़ा हो सकता है !"
"राम जन्म में दूध मिला, कृष्ण जन्म में घी,
कलयुग में दारू मिली, सोच समझ कर पी!"
"ऐ दूर के मुसाफ़िर, नशे में चूर गाड़ी मत चलाना
बच्चे इंतजार में है, पापा वापस ज़रूर आना !"
"चलाएगा होश में तो ज़िंदगी भर साथ दूंगी
चलाएगा पीकर तो ज़िंदगी जला दूंगी !"
"बड़ी ख़ूबसूरत हूं नज़र मत लगाना
ज़िंदगी भर साथ दूंगी पीकर मत चलाना!"
लंबे सफर में अपने इश्क और माशूका को याद करने वाली शायरी भी भरपूर मिलती है -
"खुशबू फूल से होती है, चमन का नाम होता है,
निगाहें क़त्ल हैं, हुस्न बदनाम होता है!"
"शराब नाम ख़राब चीज़ है, जो कलेजे को जला देती है,
उसे बेवफ़ा से तो सही है, जो ग़म को भुला देती है!"
" गिरे जो शबनम पत्ती में ,पत्ती नम नहीं होती,
जुदा लाख होमे से मुहब्बत कम नहीं होती !"
"पकड़ेगा एंटी रोमियो वाला , मारेगा ऐसी जगह डंडा
भूल जाओगे दिल-विल और प्यार-व्यार का फंडा !"
"हंस मत पगली प्यार हो जाएगा !"
कुछ शायरियां राजनीतिक भी होती हैं . जैसे -
"आप पार्टी की स्पीड से न चलें ,
वरना आपको भी उठाने को चार आदमी ही आएंगे !"
" सोनिया गाँधी , तेरा मुंह काला !"
"बुरी नज़र वाले तू पाकिस्तान चला जा !"
"ये नीम का पेड़ चंदन से कम नहीं
मेरा शहर भी किसी लंदन से कम नहीं !"
तो भई इन ट्रक के पीछे लिखी शायरियों ,कविताओं को जो हल्के में लेने की सोच रहा हो तो वो सबसे बड़ा मूर्ख और नादान है ! क्योंकि ज़मीनी हकीकत से रूबरू करवाती ये आम जन की हिंदी में लिखी शायरी ही असली शायरी है !
और सलाम उन पेंटर शायरों को जो अपनी रचनाओं को इन ट्रकों के पीछे बैठाकर बहुत ही प्रेम से हमारे दिल का पता देकर रवाना कर देते हैं और वो भी बिना किसी कापीराइट और तेरीमेरी शायरी वाले अहं भाव के , मानो कह रहे हों कि
"शायरी तो लिखेंगें बिंदास सड़कछाप ही
क्योंकि ये हिंदी नहीं है किसी के बाप की !"
मेरी मुहब्बत और दुआ ऐसे सभी ट्रक ड्राइवरों , कंडक्टरो को