तुम्हारे इश्क़ सा बेदर्द

 


 



तुम्हारे इश्क़ सा बेदर्द तो कुछ हो नहीं सकता
तुम्हारे अक्स सा हमदर्द कोई हो नहीं सकता
तुम्हारे याद ने बहका दिया है इस दीवाने को
तुम्हारी चाह सा खुदगर्ज़ कोई हो नहीं सकता
तुम्हारे इश्क़ सा बेदर्द तो कुछ हो नहीं सकता
तुम्हारे अक्स सा हमदर्द कोई हो नहीं सकता।।
         तुम्हारे गेसुओं सा घर तो कोई हो नहीं सकता
         मेरे जैसा निरा - बेघर तो कोई हो नहीं सकता
         तेरी जुल्फों की छाओं में अगर गुजरे मेरी रातें
         तुम्हारे जुल्फ के जैसा निलय कोई हो नहीं सकता
         तुम्हारे इश्क़ सा बेदर्द तो कुछ हो नहीं सकता
          तुम्हारे अक्स सा हमदर्द कोई हो नहीं सकता।
तुम्हारे होंठ के मकरंद सा कुछ हो नहीं सकता
तुम्हारे प्रीति सा स्वच्छंद कोई हो नहीं सकता
तसव्वुर में मेरे अब तो कोई दूजा नहीं आता
तुम्हारे नेह सा पैबंद कोई हो नहीं सकता
तुम्हारे इश्क़ सा बेदर्द तो कुछ हो नहीं सकता
तुम्हारे अक्स सा हमदर्द कोई हो नहीं सकता।।
         तुम्हारे नैन सा क़ातिल तो कोई हो नहीं सकता
         तुम्हरे अश्क़ का साहिल तो कोई हो नहीं सकता
         तेरे अधरों पे छायी है तबस्सुम जो खुमारी का
         तुम्हारा हुश्न, यौवन सर्द बिल्कुल हो नहीं सकता
         तुम्हारे इश्क़ सा बेदर्द तो कुछ हो नहीं सकता
         तुम्हारे अक्स सा हमदर्द कोई हो नहीं सकता।।


सुनील त्रिपाठी 'गौरव'


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