राहत पैकेज जरा हमको भी समझाना
क्या आधी हकीकत, आधा फ़साना है ।
आंखें दर्द ए दरिया हो जब कभी
आफत की काली घटा छा जाना है ।
बंदिशों का दौर दुखदाई, क्या करें
हौसला रखें वक्त तो बदल जाना है ।
संवेदना अमल बख़ूबी देते अमलीजामा
राहत नही बिन नाड़े का ये पायजामा है।
हैं आत्मनिर्भर देखो हम आज इतना
ज्योति बेटी का सबने लोहा माना है ।
बेबसी मुफलिसी का रफ़्तार देखो यारों
बुलेट ट्रेन से पहले मंजिल पा जाना है ।
सुरेश वैष्णव
भिलाई ( छत्तीसगढ़ )