मीरा  गिरधर  के लड़ लागी

मीरा  गिरधर  के लड़ लागी
मोह  ममता  दुनिया  त्यागी


विष का प्याला छट से पीया
प्रेमरस जी भर भर था पीया


कान्हां माना तन मन स्वामी
सोच  उसकी  बहुत दुर्गामी


अर्पित  कर दी भरी जवानी
लोगों ने था समझा नादानी


मीरा  के प्रभु गिरधर नागर
सारे  जगत में बात उजागर


गिरधारी  संग जीवन लाया
प्रेम छांव में जीवन बिताया


किसी  की नही  मीरा मानी
शीश झुकाया था अभिमानी


पति  मृत्यु  श्रृंगार न त्यागा
कान्हा  पति  स्वरूप साधा


जनमत  ने  आवाज उठाई
वृंदावन  में  मुक्ति हेतु आई


मन्दिरों  में खूब नाची गाई
मुरलीवाले  की स्तूति गाई


जहाँ  गई  हरि गुण  गाया 
जनता  में  सम्मान  पाया


प्रेमरस  में  डूबी मतवाली
स्फुट पद की रचना डाली


मीरा के मैं बलिहारी जाऊं
कोटि कोटि शीश झुकाऊं


मानसी  मीरा राह  चलती
कान्हां  पर  सर्वस्व  हरती


मीरा कृष्ण भक्ति उपासक
सुखविंद्र बना मीरा साधक
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल


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