"जैसे-तैसे जी रही हूँ
यादों में गुम रही हूँ
सिलसिला रुक गया
उसे अब सील रही हूँ
तुम्हारी यादें पवित्र हैं,बस
तुम्हीं परवा न कर सके
मेरे ज्ज्बात बेमोल थे,बस
तुम्हीं न दामन भर सके
जानते हो अब अधूरी मैं
बिन तुम्हारे बन जाऊँगी
साथ ले लेते तो शायद
लगता है जी भी जाऊँगी
कुसूर न था मेरा कभी
नहीं तुम्हारा भी शायद
वक्त के पन्ने पलटते
मैं तो रो पड़ूँगी शायद
दर्पण दिखाती रह गयी
सामने न कभी आ पाए
समय के दहलीज़ पर
शायद संभालने ना आए
प्रणय का इज़हार था जो
स्वीकार किया ना तुमने
समय के खेल में भी तो
नकार दिया था भी मैंने
तुम्हारी यादें हैं अब बस
झकझोरती मुझे रह गयी
शायद तुम तब चले गए थे
वहाँ मैं थी अकेली रह गयी
जानती हूँ साथ हैं हम
एक दूजे के लिए अब भी
कर लूँ थोड़ा इंतजार तेरा
शायद मिलना हो जाय कभी"
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डॉ मधुबाला सिन्हा
मोतिहारी,पूर्वी चंपारण
9470234816