ज़िन्दगी के हैं इम्तिहान बहुत
मत करो इस पे तुम गुमान बहुत ।
मुद्दतों बाद आँख भर आयी
खुद को देखा जो बेज़ुबान बहुत।
याद आती है गोद माँ की बस
जब हो जाती मुझे थकान बहुत।
जख्म शिद्दत से सी लिए हमने
नफ़रतें हैं जो दरमियान बहुत।
भीड़ में लोग शोर करते हैं
अल्हदा हैं वो बेज़ुबान बहुत।
स्वरचित
✍अर्पना मिश्रा✍