कहाँ हो तुम मेरे मनमीत
पुकारे तुम्हें मेरी प्रीत
सुन सदाएं दे रही है
तुम्हारी मंजिल मेरी जीत
विरह वेदना दे रही है
शायद यही प्रीत की रीत
अल्फाज साथ नहीं दे रहे
कैसे बताऊँ मन की प्रीत
सांसे दम तोड़ रही हैं
रहे है हसीं पल ये बीत
जिया बैचेन हो रहा हैं
तुम्ही हो सुखदुख के मीत
जोबन खुद पे हुआ भारी
आओ गाएं मधुरिम गीत
सुखविन्द्र वियोग में तन्हां
रच भी दो तुम प्रेम संगीत
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)