ये जिंदगी में मरहम कम, घाव बहुत बा,
इहाँ घाव भरेवाला के, अभाव बहुत बा।
केहू घाव भरे खातिर, तैयार भी होई,
त ओकरा पर, दुष्ट के, प्रभाव बहुत बा।।
सबलोग के पता बा, एक दिन सभे मरी,
केहू लेके कुछ ना जाई, केतनो जतन करी।
फिर भी केहू ना समझे, ये माया जाल के,
केहू माने भा ना माने, जइसन करी भरी।।
अखिलेश्वर मिश्रा