अथ श्री छन्नीलाल कथा

 



डा. ज्ञानवती दीक्षित


जनता के लिए बहुत सारी कल्याणकारी योजनाएं चलाई जाती हैं, जो अधिकांशतः जनता से ही टैक्स लेकर जनता के कमजोर वर्गों के लिए संचालित होती हैं। आज मैं आपको जो कहानी सुना रही हूं, वह है  श्री छन्नीलाल जी की।श्री छन्नी लाल जी एक गांव के निवासी हैं और उन्होंने आवास के लिए प्रार्थना पत्र दिया था। हमारी एक परिचित अधिकारी ,जो बहुत ईमानदार और एक्टिव हैं,उसकी जांच करने के लिए पहुंचीं। श्री छन्नीलाल जी एक मड़ैया में अपनी पत्नी के साथ बरामद हुए ।उसमें थोड़े बहुत कपड़े टंगे हुए थे और एक टूटा-फूटा बक्सा था। अधिकारी को संदेह हुआ ।उन्होंने पूछा- इतना ही सामान है तुम्हारे पास ?
-जी साहब! कुछ है ही नहीं ।बहुत गरीब हूं ।
अधिकारी ने दिमाग से काम लिया और कहा -अपना आधार कार्ड दिखाओ। है तुम्हारे पास ?
उसने कहा-  जी सर ।आधार कार्ड है मेरे पास, लेकिन लेने जाना पड़ेगा।
- क्यों ?तुम्हारे पास क्यों नहीं है ?जब तुम रहते यहां हो ,तो तुम्हारा सामान दूसरी जगह क्यों है?
 इसका कुछ संतोषजनक जवाब श्री छन्नीलाल नहीं दे सके ।तब तक उनकी पत्नी सामने आईं और उन्होंने रोना गाना शुरू किया- हम बहुत गरीब हन साहब। हमका आवास दै दीन जाय।
अधिकारी ने द्रवित होकर कहा -तुम्हारी बैंक पासबुक तो होगी?
- जी साहब बैंक पासबुक है। 
-लाओ। 
उसका वही जवाब -कहीं रखी हुई है, लाना पड़ेगा। अधिकारी को बातों में उलझा कर इतनी देर में श्री छन्नी लालजी खिसक गए थे ।अधिकारी ने अपने सहायक के साथ वहां महिला को बात करते छोड़कर तेजी से छन्नीलाल जी की तलाश आरंभ की ।पता चला  श्री छन्नी लालजी थोड़ी दूर पर स्थित अपने पक्के मकान में आधार कार्ड लेने गए थे। अधिकारी ने पड़ोस से पूछताछ की, तो पता चला उनकी आर्थिक स्थिति बढ़िया है और छन्नीलाल जी फिर भी आवास योजना का लाभ लेना चाहते हैं।
 मैं सोच में पड़ गई। इसमें तो ईमानदार अधिकारी होने के कारण इस प्रकरण की सही जांच हो गई, परंतु अधिकांशतः देखने में आता है कि आवश्यकता नहीं है उनको सब कुछ मिल जाता है और जिनको आवश्यकता है वह किसी योजना का लाभ नहीं पाते ।मुझे तो यह सारी योजनाएं जनता के पैसे का दुरुपयोग लगती हैं। भ्रष्टाचार के अलावा देश को इनसे कुछ नहीं मिल रहा और जो भी सरकार आती है, यही सब लाली पाप देकर वोट बटोरने का प्रयास करती है। आज आवश्यकता है कुछ कड़े कदम उठाने की और बहुत सारी योजनाओं को बंद करके एक स्वाभिमानी राष्ट्र, जो छप्पर में भी गुजारा कर सके लेकिन स्वाभिमान से सिर उठा कर जिए, ऐसे नागरिक निर्माण करने की आवश्यकता है। न कि विकलांगों की एक फौज ,जो सिर्फ कटोरा लिए खड़ी रहती है और अपने ही श्रम पर भरोसा नहीं करती ।मैं जानती हूं बहुत सारे समाजवादी लोगों को बड़ा बुरा लगेगा और वे  पोस्ट के विरोध में आ जाएंगे, लेकिन मैं तो सत्य लिखती हूं और सांच को आंच नहीं होती।


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