फाल्गुन

     


फाल्गुन मास का है एक जुदा जुदा सा रंग, 
फिजाओं में घुली हुई है उल्लास की एक तरंग |


छाई मस्ती सभी हर्षित और मस्त विभोर हुए, 
पर बदले हैे सभी के अपने अपने खुशी के ढंग |


देखो गुलमोहर, पलाश, नीम और आम बौराये, 
श्वासे सुरभित हुई है इस नई नई  महक के संग |


खेत खलिहानों में गेहूँ,जौ और चना  इठलाये, 
किसानों के चेहरों पर खिली है ह्रदय की उमंग |


राई -सरसों के पीले फूलों पर भँवरे गुनगुनाये,
गाये मस्ती में सब धमाल बजाते ढफ और चंग|


मौसम हुआ सुहावना ठिठुराती सर्दी का अंत,
लुत्फ लेने बिलों से बाहर आने लगे अब भुजंग |


सुने कभी शिव तो कभी श्याम के जय जयकारे, 
खतम होगा ये  फाल्गुन होलिका दहन के संग |


स्वरचित मौलिक रचना -सीमा लोहिया 
झुंझुनू (राजस्थान)


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