*ये बयार फाल्गुन मास की अब,*
*मदछकी बहने लगी|*
*ये टोलियाँ हर गाँव गली में,*
*फाग की सजने लगी|*
*जब गीत होली के बजे तो,*
*रास अब रचने लगी|*
*ढ़प ढ़ोल बाजें रसिक नाचें,*
*बांसुरी बजने लगी|*
*जब राधिका संग श्याम नाचें,*
*मुदित मन होने लगे|*
*नवकंज लोचन कंज मुख सब,*
*स्नेहवश खिलने लगे|*
*अब मधुर स्वर में बांसुरी संग,*
*चंग भी बजने लगे|*
*कंदर्प अगणित अमित छवि रति,*
*रसिक मन हरने लगे|*
*रंग प्रकृति के हैं विविध अब,*
*सब के सब सजने लगे|*
*स्वर सात सरगम के हैं जो,*
*अब वे सब बजने लगे|*
*मधुर स्वर में कोकिला संग,*
*बाग वन खिलने लगे|*
*गैंहू की बाली पुष्प-लाली,*
*मुदित मन करने लगे|*
*पट पीत सरसों आम्र शोभा,*
*मनहरण करने लगे|*
*श्री नन्द के आनंद माधव,*
*रास जब रचने लगे|*
*अब हरित पीत गुलाल लाल,*
*रंग प्रीत के लगने लगे|*
*भई प्रेम-वृष्टि अमित पावन,*
*स्नेहवश मिलने लगे|*
*चंद्र चारु की रश्मि चंचल,*
*मधुरता बहने लगी|*
*अब पवन शीतल मंद सुरभित,*
*सरसता बहने लगी|*
*जय जयति माधव जयति राधे,*
*सृष्टि सब कहने लगी|*
*ये बयार फाल्गुन मास की अब,*
*मदछकी बहने लगी|*
*स्वरचित*
*सुरेन्द्र चेजारा व्याख्याता*
*श्रीमाधोपुर (GSSS HKB)*