वन्देमातरम

 


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मिरे  यार  मुझसे अब बिछड़ने लगे है।
वक्त  के मानो पाँव यूँ उखड़ने लगे है।।

गुनाहों  के  दौर  में  कोई  हकीम नहीं ।
मेरे  फेंफड़े  तो  बस  सिकुड़ने लगे है।।

तुरपाई  से  सीले  थे रिश्ते जो फुर्सत में।
उनके  भी  धागे  सारे  उधड़ने  लगे  है।।

सर  छुपाया  जाये तो कहाँ  इस  दौर में
हालात  तो  यहाँ  भी  बिगड़ने  लगे  है।।

सफर  की तालीम अपने पराये होते गये।
लोग है कि गैरों की अँगुली पकड़ने लगे है।।
                                  मास्टर लिम्बा जैसलमेर


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