तुम्हारा घर बसाती है

सच में बहू कितनी बुरी होती है ना,
घर छोड़कर आती है,मां बाप का ,
तुम्हारा घर बसाती है।
नया परिवार,इस खुशी में,सब भूल जाती है
माता पिता,सांस ससुर को बनाती है।
भाई,बहन,ननद देवर जेठ को बताती है।
हो घर में यदि बीमार कोई,
अपनी हर बीमारी भूल जाती है।
मगर फिर भी कभी नहीं वो ससुराल में,
बेटी कहलाती है।
हमेशा बेगानी बेटी ही कहलाती है ,
पीढ़ी दर पीढ़ी यही तमगा पाती है।
और तो और हर मुसीबत अपने सिर लेने वाली,
सुनती है ,यही बेटे को सिखलाती है।
यही तो है जो सब बुरा करवाती है।
बहू है ना, बेगानी बेटी,
तभी तो,हर इल्जामात,
हंसते हुए सह जाती है।
कभी कभी तो पतिदेव को भी,
अलग खड़ा पाती है।
फिर सोचती है,वो एक मां भी है अब,
बच्चों की खातिर चुपचाप घर बसाती है,
पांव कभी भी,दहलीज़ के बाहर नहीं रख पाती है।
क्योंकि पिता की एक ही बात हमेशा याद आती है,
बेटी की डोली मां बाप के घर से उठती है,
ससुराल से केवल अर्थी उठाई जाती है।


कौशल बंधना पंजाबी।@
भाखड़ा नांगल डैम।
पंजाब।
 8:33 am Friday
28 Feb 2020


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