जहाँ अपने रहते हैं,
जहाँ सपने रहते हैं,
ऐ कलम ! चलो ,
वहाँ बसेरा करते हैं ।
न तेरा करते हैं,
न मेरा करते हैं,
ऐ कलम ! चलो ,
ऐसा सबेरा करते हैं ।
न तोड़ते हैं कुछ,
न जलाते हैं कुछ,
ऐसे प्रभात का -
फेरा करते हैं ।
अर्चना श्रीवास्तव
जहाँ अपने रहते हैं,
जहाँ सपने रहते हैं,
ऐ कलम ! चलो ,
वहाँ बसेरा करते हैं ।
न तेरा करते हैं,
न मेरा करते हैं,
ऐ कलम ! चलो ,
ऐसा सबेरा करते हैं ।
न तोड़ते हैं कुछ,
न जलाते हैं कुछ,
ऐसे प्रभात का -
फेरा करते हैं ।
अर्चना श्रीवास्तव