तुम्हारी पीर मांगी थी

  



कसम खाकर के लव खोलो,
राज हमसे ये तुम बोलो ।
खुशियों की हमने कभी तुमसे
सनम ताबीर मांगी थी।
तुम्हारे घाव मांगे थे , तुम्हारी पीर मांगी थी ।।
 निशा गहन अंधियारी थी,
रात्रि प्रकाश पर भारी थी ।
जीवन बगिया में मिटने की,
पल पल तेरी तैयारी थी ।।
पुष्प प्रणय खिलते बगिया में,
पर्याय पुनः अरुणिम होती,
अन्धकार स्वयं में भरने और तुझको देने ज्योति।
तुम्हारे अंधेरे मांगे थे , निशा घनघोर मांगी थी।।
तुम्हारे घाव......
  प्राणों में तेरे बसते वो सब तो तेरे     
    अपने थे ।
    आजीवन जो रहे अधूरे से,
     ऐसे हम तो कभी सपने धे ।
     नवांकुर खिले तेरे मन उपवन,
     हमने बस इतना ही चा हा ।।
     नवचेतनता भरने तेरे मन में
   मन के तेरे तूफान मांगे थे, ठंडी बयार मांगी थी ।।
तुम्हारे घाव.....
   घोर निशा में रात रातभर ,
    खुद ही खुद से बातें करना।
     एक कसम के कारण तेरा,
        मंजूर नहीं यूं हरपल मरना
       वो नश्तर हमें नामंजूर जो,
       हरपल मन में घाव भरे।
       वो कसम नहीं मंजूर हमें ,
        हरदम जीवन में घुटन भरे
        
प्रणित यौवन के तुम्हारे कुछ श्वाश मां गे थे,प्रेम की झील मांगी धी ।।



सर्वाधिकार सुरक्षित
स्वरचित
रंजना शर्मा


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