अवधी निरगुन : दुइ बीता कै कोठरी

 



छन भंगुर जग कै चरित, जस रबि सम्मुख बूँद।
बिनय भाप बनि उड़ि चले, आँखि खोलु या मूँद।१।


माड़ो-पीसो-भूजि ल्यो, गहो सुद्ध जग सार।
गुरू भाँति तीनिउ लखो, 'मड़नी 'चकिया 'भार।२।


मड़नी जस जग फिरि रहा, भरमै जेहिमा प्रान।
'ओसवै थोथा सूप ते, गागर भरे सयान।३।


जग फिरता इक पाट सा, दूजा थिर भव-भूप।
गहि 'मुठिया जप-नाम की, 'उजरा निकसे रूप।४।


'भार परे 'मकई खिले, स्वेत कमल समरूप।
चलनी छाँड़े रेत को, शेष राम अनुरूप।५।


'दुइ-बीता कै कोठरी, करमन बँध जग आय।
मरा-मरा पुनि जप सुरू, 'थारी पीटी जाय।।
थारी पीटी जाय, राम पुनि बिसरी देही।
'चरखा-पूनी पाय, चदरिया जग को 'बेही।।
'लार बहे बहुरूप, लगे भल कितन्यौ तीता।
बुनी चदरिया खूप, भयी 'जोजन दुइ-बीता।६।


भच्छै भच्छ-अभच्छ सब, सुरसा जस मुख खोल, 
'जठरागिन नटनी हँसै, कठपुतली को मोल।७।


-विनय विक्रम सिंह
#मनकही


'मड़नी- गेहूँ को कटाई के बाद गोल बिछा कर उसपे बैलों से मड़ाई की जाती थी, जिससे गेहूँ, गठुरा, भूसा अलग हो जाता था, फिर उसे तेज हवा करके सूप या छींटे से ओसा लिया जाता था। 'चकिया- चक्की। 'भार- भाड़, जिसमें लाई, मक्का आदि भूजा जाता था। 'मकई- मक्का। 'ओसवै- धोती/चादर आदि से हवा करके, सूप या छींटे से मड़ाई को नीचे गिराते थे, जिससे भूसा आदि दूर हो जाता था और गेहूँ-गेहूँ अलग हो जाता था। 'मुठिया- चक्की का हत्था। 'उजरा- उजला, श्वेत। 'दुइ बीता कै कोठरी- शिशु। 'थारी- थाली। 'चरखा-पूनी- जगत कर्म। 'बेही-ब्याही। 'लार- यहाँ लोभ/लालसा हेतु प्रयुक्त। 'जोजन- योजन, दूरी का बड़ा मानक। 'जठरागिन- जठराग्नि, यहाँ भौतिक लालसा हेतु प्रयुक्त।


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