मैं तुमको नामर्द लिखूं

कितनी बार मैं बेटी,तेरा दर्द लिखूं
कितनी बार दरिंदे, मैं तुमको नामर्द लिखूं।


कब तक रूदन करूं, मैं हालात पर,
कब तक करूं अफ़सोस, नामर्द तेरे आघात पर।
कब तक बोटी बोटी नोची जाएगी,
कब जाकर सत्ता कठोर फैसले ले पाएगी।


करूणा कहां से लाऊं मैं हालात पर
रोष भरा है भीतर अब विश्वासघात पर।
जलाओ उनको भी वैसे ही जलती आग पर,
अधमरा कर फिर छोड़ दो, कुकर्म का अफ़सोस कर।


बेटी उठा हथियार, अब ना तू डर,
करना है तो स्वयं को सुरक्षित तू कर।
बन मर्द अबला बनकर अब गुजारा नहीं,
तेरे इर्द गिर्द दिखें अब कोई आवारा नहीं।


कर आर पार हथियार, चुप रहना नहीं,
दे सजा ए मौत, अत्याचार सहना नहीं।
तू चंडी, दुर्गा माहेश्वरी साधारण नहीं,
दुश्मन ना कर सके तू ढ़ेर, कोई कारण नहीं।


बन काली काट दे धड़ तू नामर्द का,
पता चले उसको भी तेरे दर्द का।


कौशल बंधना पंजाबी। स्वरचित@


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