मदमस्त हो मन से झूम है जाता
हो कोई भी पीने वाला।
भूल है जाता जीवन का गम
बस,पीकर इक छोटा सा प्याला।।
कहते है समाज मे सब
है नीच कुकर्मी पीने वाला।
पर,उनको मालूम नही है ,ये!
निश्छल प्रेम मे जीने वाला।।
उन्नीस सौ तैतीस मे हरिवन्श जी के,
शब्दो से थी उठती ज्वाला।
बैर कराते मन्दिर- मस्जिद,
मेल कराती मधुशाला।।
कुछ मधु प्यालो को मिला "रमन"
तू बना डाल जीवन की माला।
जब जन्नत का एहसास यही फिर,
क्यूं ना जाए सब मधुशाला।।
-नीरज कुमार रमन
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परशुरामपुर सुल्तानपुर