अपराधी जब खुद करे ,अपना जुर्म कबूल।
कोर्ट कचहरी में बहस,लगती बड़ी फिजूल।
लगती बड़ी फिजूल,व्यवस्था सुदृढ़ बनाओ।
जो भी करता जुर्म ,उसे फांसी लटकाओ।
सहती है संत्रास , आज आबादी आधी।
करते पापाचार , निडर सारे अपराधी।।1
नारी के जो साथ में , करते हैं दुष्कर्म।
ज्ञात नहीं शायद उन्हें,निज संस्कृति का मर्म।
निज संस्कृति का मर्म,कौन उनको समझाए।
जिनकी कामुक - वृत्ति , घूमते वे बौराए।
नर वे सभी कलंक ,बने जो स्वेच्छाचारी।
महज भोग की वस्तु,नहीं धरती पर नारी।।2
डाॅ बिपिन पाण्डेय