पत्थर पर दूब जमाते हो सूरज को दीप दिखाते हो,
हाथों में जुगनू लेकर तुम रातें रोशन कर जाते हो!
~~~~~~~
जलते मरुथल में,उपवन की तुम सहज कल्पना कर लेते,
सागरकी लहरोंपर चढ़कर,सपनों का महल बनाते हो!
~~~~~~~
तुमको बबूलके पेड़ों पर,मिलते रसाल के मीठे फल,
कीचड़ से चुन लाते गुलाब काँटों में कमल खिलाते हो!
~~~~~~~
पत्थर की खानोंसे हीरे खेतों से सोना लेआते,
सागर तट पर बैठे बैठे,मोती लेकर घर आते हो!
~~~~~~~
युवती के अधरों पर तुमको दिखते हैं मदिरा के प्याले,
काली लहराती जुल्फों से सावन भादों बरसाते हो!
~~~~~~
सूरज में शीतलता दिखती छाया में धूप नजर आती,
गर्मी के मौसम में भी तुम हिम की वर्षा करवाते हो!
~~~~~~
पर्वत से निकल रही नदियाँ बल खाती नागिन लगती हैं,
तुम चाँद धरा पर लेआते,धरती आकाश मिलाते हो!
~~~~~~
भगवान स्वयं हैरान हुआ जाता है तुमको देख देख,
उसके सब नियम बदलकर ही तुम कवि,शायर कहलाते हो!
~~~~~~
----- विद्या भूषण मिश्र "भूषण"-----
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~