कवि_शायर

 



पत्थर पर दूब जमाते हो सूरज को दीप दिखाते हो, 
हाथों में जुगनू लेकर तुम रातें रोशन  कर जाते हो!
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जलते मरुथल में,उपवन की तुम  सहज कल्पना कर लेते, 
सागरकी लहरोंपर चढ़कर,सपनों का महल बनाते हो!
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तुमको बबूलके पेड़ों पर,मिलते रसाल के मीठे फल,
कीचड़ से चुन लाते गुलाब काँटों में कमल खिलाते हो!
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पत्थर की खानोंसे हीरे खेतों से सोना लेआते, 
सागर तट पर बैठे बैठे,मोती लेकर घर आते हो!
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युवती के अधरों पर तुमको दिखते हैं मदिरा के प्याले,
काली लहराती जुल्फों से सावन भादों बरसाते हो!
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सूरज में शीतलता दिखती छाया में धूप नजर आती, 
गर्मी के मौसम में भी तुम हिम की वर्षा करवाते हो!
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पर्वत से निकल रही नदियाँ बल खाती नागिन लगती हैं, 
तुम चाँद धरा पर लेआते,धरती आकाश मिलाते हो!
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भगवान स्वयं हैरान हुआ जाता है तुमको देख देख, 
उसके सब नियम बदलकर ही तुम कवि,शायर कहलाते हो! 
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 ----- विद्या भूषण मिश्र "भूषण"-----
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