ग़ज़ल

 



मैं  हर  पल  को उजियार करूँ
पापा  -  मम्मी  को  प्यार  करूँ


मानव  -  सेवा   लक्ष्य   हमारा
मैं   कविता   से  इज़हार  करूँ


आँसू   पोंछूँ    रोते    जन   का
मैं  जन - जन का सत्कार करूँ


संघर्ष    करूँ    मैं    राहों    से
मैं   झूट   नहीं   स्वीकार  करूँ


दिल को अपने जला-जलाकर
मैं    अंधेरे    पर    वार    करूँ


सच   से   अपनी  यारी  हरदम
हर  मुश्किल  को  मैं  पार करूँ


नफ़रत  से  लड़ना  मक़सद  है
मैं   प्यार   यहाँ  तलवार  करूँ


कुछ   लोग   यहाँ  पर  ऐसे  हैं
'ऐनुल'  उनको  अख़बार  करूँ


@ 'ऐनुल' बरौलवी


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