बहुत खुश हो के पर्वतों तक
पतंग उड़ा डाली,नमी हवा की
आँसुओं में पी डाली,बहुत
मंजर थे स्वप्नों के, माथे पे
लकीरें खोद डालीं,चर्चा सरे आम
था दुःखों के बोझ का,नदी किनारे
के पत्थरों से नदी रौंद डाली
किसी बेजान से आत्मा लगा
बैठे वो दोने भर भर आसूओं से
गंगा-यमुना बहा बैठी, बड़ी परि
-वर्तनशील है जिन्दगी किस
छोर जा बैठे खुशी ओ ग़म में
@सरला धस्माना बैन्डाले 21-11-19