मुक्तक

 



एक्के सूरूज रोशन बा जग,
चहलें ना कबो संघतिया।


एक्के चान का उगले थाके
करिया कुचकुच नित रतिया।


एक्के शेर गरजि जंगल में
आपन राज चलावेला,


बस, अदिमी खोजेला, खोजी
बिनगरजे लाख संघतिया।



संगीत सुभाष,



मुसहरी, गोपालगंज।


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