मिले सुर मेरा तुम्हारा मिले शब्द में मिलना जरूरी है ना ? ऐसी ही ये कहानी है किसी के मिलने की और उसके सुर में मेरा सुर पाने की । दो बरस पहले की बात है । मैं स्कूल की पिकनिक में गया था ।गांव के नजदीक के कर्नाला किले में । हम कुल मिलाकर कुछ पन्द्रह छात्र थे और साथ में हमारे टीचर अशोक सर । सुबह छ बजे हम पहले स्कूल में इकट्ठा हुए । अशोक सर ने हमारी हाजरी ली मिनी बस से करीबन साढ़े सात बजे किला जिस पहाड़ पर खड़ा हैं उस पहाड़ के तले उतर गए ।
बस मे हम बच्चों ने खूब धमाल किया ।
अंताक्षरी गाते गाते हमारी टीम पर म अक्षर आया । फिर क्या मैंने मिले सुर मेरा तुम्हारा ये गीत की चार लाइने गायी । उस गानेका प्रभाव ही ऐसा है कि पूरा गीत गाने के सिवा समाधान नहीं मिलता । सभी छात्रों ने ऊंचे स्वर में ये गाना गाया ।
तब तक हम पहाड़ के तले आ गए थे । सबके मन मे मिले सुर मेरा तुम्हारा ये गीत गूंज रहा था । फिर घने जंगलके रास्ते से हम किले की दिशा में चलना शुरू किया । आगे पुरा पहाड़ चढ़ने के बाद....हमे किला दिखने लगा ।
हम सब चढ़ाई के दरम्यान पूरे थक गए थे । बहुत सा अंतर हम सब पार करके आये थे ।
फिर भी किले तक कि ऊंचाई चढ़नी थी ।...
आगे चलकर थोड़े ही देर में हम पहाड़ पर आ गये । जहां किलेका मुख्य द्वार था । किलेके अंदर एक बुरुज पर दस बारह आदिवासी लड़के गुल्ली डंडा खेल रहे थे । उन्होंने अपनी गायें घास खाने के लिए लायी थी ।
हमे अचरज हुआ कि गायें इतनी ऊंचाई पर कैैैसे आयी । लडकों को पूछा तो मालूम पड़ा की ये लड़के तो यहां गायें रोज लाते है । गायें आरामसे अपना पेट भरती है । बच्चे आरामसे खेलते हैं ।शाम होनेसे पहले बच्चे अपनी अपनी गायें लेकर पहाड़ उतरते है और अपने अपने घर जाते है ।
मेरे मन मे सवाल आया कि ये बच्चे स्कूल में जाते की नही । मैने अशोक सर से पूछा । सर ने बच्चोंको पूछा तो मालूम पड़ा उनकी शाला शाम को रहती है।
गांव के मुखिया ने ये शाला ऐसे ग्वालों के लिये चालू की थी ।
देहाती बच्चें होनेके बावजूद उनकी पढ़ाई चालू थी ।
हम सबने उनके साथ थोड़ी देर गुल्ली डंडा खेला और उन्हें साथ लेकर खाना खाने के लिए बैठे ।उन्होंने अपनी रोटी सब्जी प्याज निकाली । हम सबने हमारे टिफिन निकाले ।
अब हमको तो खूब भूख लगी थी । अशोक सरने खाना शुरू करनेसे पहले हाथ जोड़े ।हमारे मुहसे निकलने के पहले उन सब ग्वालोंके मुह से "वदनि कवळ घेता नाम घ्या श्री हरिचे सहज हवन होते नाम घेता फुकाचे । जीवन करि जीवित्वा अन्न है पूर्ण ब्रह्म । उदर भरण नोहे जाणिजे यज्ञकर्म ।
अशोक सर के साथ हम सबको ताज्जुब हुआ की ये कैसे हो सकता है । हम जो मन्त्र खाना शुरु करने के पहले गाते थे वो ही मंत्र वो देहाती बच्चे हमारे साथ हमारे स्वर को स्वर मिला कर गा रहे थे । उन सभी लडकों को उनकी शाला ने उनपर ये संस्कार किये थे । तभी हमने उन सबको
प्रणाम किया । हमारे और उनपर होने वाले संस्कार मिलते जुलते थे । तो सुर और स्वर भी मिलते जुलते ही रहेंगे । हमारी ये पिकनिक ने हमे, "मिले स्वर मेरा तुम्हारा" इस शब्दों का प्रत्यक्ष अर्थ दिखाया ।हमने अब पिकनिक का नाम ही बदल डाला ।मिले स्वर मेरा तुम्हारा अब आगे कभी भी कहीं भी जाएंगे तो हमारे स्वर से मिलते जुलते स्वरों को ढूंढ निकालेंगे ।स्वर से स्वर मिलाते रहेंगे
दिवाकर वैंशपायन