#किरण मिश्रा#
पावन गुरु की रात्रि थी, चैत्रीय तिथि पुनीत।
दुर्गा नवमी धूम की , गाते मधुर गीत॥
टौस नदी के तट बसा, ब्राह्मण परिवार।
आलय उनके जन्म ली, किरण पुँज आधार॥
दो भ्राता दो बहन में, दूसरा रहा स्थान।
प्रथम पढ़ाई मातु से,दूजा स्कूली ज्ञान॥
पिता हमारे फौज में, रखे देश का मान।
मोह त्याग परिवार का, बढाये खूब शान॥
पहली पाठशाला रही,गाँव का ही स्कूल।
हिन्दी में एम0 ए0 किया,शोभित माथे फूल॥
उन्नीस सौ निन्यानवे,मेरा कन्यादान।
पतिदेव प्रदीप जी,रखते पूरा ध्यान॥
दो बच्चों की माँ बनी, यश और तनिष्क।
नारी हुई पूर्ण मैं, लाखों में बन एक॥
पहली पुस्तक जब छपी, बढ़ा किरण का मान।
विधि भारती सँसद भवन, मिला श्रेष्ठ सम्मान॥
समाचार पत्रों में भी,रहती रचना धूम।
मान और सम्मान पा,जाती मन से झूम॥