ग़ज़ल

 



कौन  माना   है, यहाँ  पर  कौन  रूठा  है
अपनी अपनी शर्त में हर शख़्स उलझा है


सोच  कर  ये  देखिये  जो दिख रहा है वो
अस्ल  में  इंसान  का क्या सच्चा चेहरा है


नेक  माना  तुम बहुत हो अपनी नज़रों में
ग़ैर  की  नज़रों  में  हो  तो  और अच्छा है


बेरुखी  से  आप  मिलते  हैं  न  जाने क्यों
याद  रखिये  आप  से  जन्मों  का नाता है


वक़्त  से  पहचान  अपनी  कब हुई है जो
हम ये कह दें चमका अपना भी सितारा है


एक  दिल  है  एक  वो हैं जिसमें हम ठहरे
'भवि' का उनके साथ में ही अब गुज़ारा है


शुचि 'भवि'


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