शैलेन्द्र कुमार साधु
***दहेज ***
पं०महेन्द्र मिश्र के मिश्रवलिया,
जलालपुर( सारण )
राज्य-बिहार
संम्पर्क-९५०४९७१५२४
" आतंकीय सागर"
" दहेज का"
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चीखते अखबार और रोती पत्रिकाएँ,
हर रोज बनाए ये नयी नायिकाएँ।
फिर ये अखबार खोलो, वो पत्रिकाएँ,
जिनमें लिखी कोमल कलियों की हत्याएँ।
दिखती हैं लाशें,कहीं जलती हैं चिताएँ।
ढूँढो जरा इनका कारण तो भला,
यही कि,सास ने कहा-बहू दहेज और ला!
बताओ तो जरा मायके से लाई हो क्या?
कार नहीं दी, दे पायेगी और क्या?
सप्ताह तक नहीं लाई तो जिन्दा दूँगी जला,
बसों में रोज धक्के खाता पति तेरा।
स्कूटर भी नहीं लाई, क्या यही फर्ज है तेरा?
ननद तेरी बिन कंगन की घूमती है,
सहेलियों के ताने हरदम सुनती है।
गर्मी है बड़ी, कूलर मंगवा लेना,
लगे हाथ फ्रीज का काम कर आना
दामाद नहीं बेटी को तो देंगे,
कंगाल तो नही है, झट से भिजवा देंगे!
बहू कुछ न लाई,डरती सी आ गयी,
सास ने बात की, ननद मुँह घुमा गयी।
फिर डाला सास ने तेल,
और ननद आग लगा गयी।
बाद में मचाया शोर ऐसा सास ने,
देखो लोगों ,आग मेरी बहू को खा गयी।
पूछा जब लोगों ने, तो सास घबरा गयी।
बोली फिर- कम्बख्त स्टोव फट गया।
हाय रे! मेरा तो संसार उजड़ गया।
पूछे कोई ऐसे भले इंसानों से,
स्टोव क्यों फटते हैं बहू के हीं आने से!
कभी इनमें जलकर कोई सास न मरे,
तो बहुओं का हीं क्यों बुरा करे?
आओ हम मिटा दें ऐसी खौफनाक खबर को,
मिलकर रोकें उमड़ते हुए दहेज रूपी सागर को।
न रोका गया तो न जाने क्या हो जाएगा,
दहेज के लोभियों पर इतिहास बन जाएगा।
बचा लो इन्हें, ये कलियां न मुरझाएँ,
दहेज को मिटाने का कसम हम उठाएँ।
दहेज रूपी आतंक को सागर में रहने न देना है,
क्योंकि --दहेज के लोभी भटके हैं,
इन्हें रास्ते पर लाना है।